खुशियाँ क़ैद हो गयी ग़म के तहखानो में
वर्ना कौन जागता है रात के वीरानो में
ज़िंदगी के रहगुज़र में मुलाकात न हुयी
ढूंढता हूँ तुझे मै अब अपने अफ़्सानो में
रुसवाई की मुझे कोई परवाह नहीं अब
नाम लिखा रक्खा है अपना दीवानो में
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
वर्ना कौन जागता है रात के वीरानो में
ज़िंदगी के रहगुज़र में मुलाकात न हुयी
ढूंढता हूँ तुझे मै अब अपने अफ़्सानो में
रुसवाई की मुझे कोई परवाह नहीं अब
नाम लिखा रक्खा है अपना दीवानो में
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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