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Thursday, 22 January 2015

फूलों से आशिकी करते रहे

फूलों से आशिकी करते रहे
और खार बन के उगते रहे

बचपन मे बिछड थे जिससे
उम्र भर उसे ही ढूंढते रहे

शोले और शरारे न थे पर
अलाव की तरह जलते रहे

राह मे धूप और किरचें थी
पांव बरहरना हम चलते रहे

तुम्हे क्या मालूम मुकेश बाबू
दर्द सह कर हम हंसते रहे

मुकेश इलाहाबादी ...........

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