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Thursday 26 February 2015

छत सिर्फ छत नही होती

छत
सिर्फ चार दीवारों पे टिकी
सिर पे टंगी
सतह भर नही होती
छत हमे रहने की सहूलियत देती है
छत हमारे दुख दर्द को छुपाये रखने मे मदद देती है
छत हमे देती है
खुला आकाश
ताजी हवा
उगता और डूबता सूरज
बरसात की फुहारें
और,
जाडे की नर्म धूप
छत ही वो जगह है
जहां खडे हो कर हम अपने आस पास को देख पाते हैं
और अच्छी तरह से
छत वो जगह होती हैं
जो अक्सर रात कें अधेरे मे
भीड़ से अलग  जाकर
आसूं बहाने को जगह देती हैं
छत वा जगह होती हैं जहां हम दुख में तारे गिन कर रात काट देते हैं
छत ही अक्सर हमे अपने प्रेमी से मिलने की जगह और माहौल दिलाती हैं
छत ही तो हैं जहां हम अपने कपडे सुखाते हैं और भीगे बाल
छत ही हमें पतंगे उड़ने के लिए एक खूबसूरत जगह मुहैया कराती है
छत प्रेम के फलने फूलने और बढ़ने का अवसर भी देती है
छत ही तो वह जगह होती है
जहां हम अक्सर अपने घर का कबाड रख आते हैं
और भूल जाते हैं महीनो के लिये सालों के लिये
फिर भी छत उस कबाड को अपने सीने पे लादे  रहती हैं सालों साल
और हमसे कोई शिकायत नही करती
छत ही तो हैं जो हमे तमाम आंधी तुफान से बचा कर रखती हैं
और छते ही तो हैं जो हमे इज्ज्त आबरु देती हैं
नही विस्वास है तो उनसे पूछ कर देख लो
जिनके सिर पे छत नही होतीं
इसी लिये तो कहता हूं
छत सिर्फ छत नही होती

मुकेश इलाहाबादी --------------


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