वक़्त के साथ बदल रहे हैं
हम भी साँचे में ढल रहे हैं
है आराम कहाँ मयस्सर
कि सुबो -शाम चल रहे हैं
तुमसे मिल कर ऐ-दोस्त
मेरे अरमान मचल रहे हैं
सहरा था ये दिले गुलशन
गेंदा - गुलाब खिल रहे हैं
तुम भी तो कुछ बोलो भी
बहुत दिन बाद मिल रहे हैं
मुकेश इलाहाबादी ----------
हम भी साँचे में ढल रहे हैं
है आराम कहाँ मयस्सर
कि सुबो -शाम चल रहे हैं
तुमसे मिल कर ऐ-दोस्त
मेरे अरमान मचल रहे हैं
सहरा था ये दिले गुलशन
गेंदा - गुलाब खिल रहे हैं
तुम भी तो कुछ बोलो भी
बहुत दिन बाद मिल रहे हैं
मुकेश इलाहाबादी ----------
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