Pages

Thursday 19 March 2015

यदि, प्रेम भी धतूरे की तरह या कि, बेर की तरह झाडियों मे उगा करता

यदि,
प्रेम भी धतूरे की तरह
या कि,
बेर की तरह झाडियों मे उगा करता
तो मै, झउआ भर तोड लाता
और डाल देता तुमहारी झोली मे

या फिर
तुम ही किसी दिन घूमने के बहाने निकलती
और अपने आंचल मे भर लाती ढेर सारा प्रेम
और उलीच देती मेरे सामने

तब हम दोनो खाते प्रेम का मीठा फल
और बच जाते आपस मे आये इस कसैले पन से

मुकेश इलाहाबादी ..................................

No comments:

Post a Comment