Pages

Monday 16 March 2015

थपेड़े ही थपेड़े हैं, रेत् के घरौंदे हैं

थपेड़े ही थपेड़े हैं, रेत् के घरौंदे हैं
जिस्म भीड़ में, मन से अकेले है
मुकेश है किसका दामन उजला ?
चाँद के जिस्म पे भी स्याह घेरे हैं
मुकेश इलाहाबादी -------

No comments:

Post a Comment