तुम्हारे खत
तुम्हारी तस्वीर
तुम्हारे संग बिताये लम्हों के संग
गाड आया था
घर के पिछवाडे आंगन मे
ताकि
भूल जाउं तुमको तुम्हारी यादों के संग
और भूल भी गया था
लगभग
पर तुम्हारी यादों ने
आकाश,हवा,मिटटी,बादल व रोशनी के संग
जाने क्या साजिश की
कि उग आया एक बिरुआ
मेरे आंगन मे ठीक उसी जगह जहां गाड आया था
तुम्हारी यादें
आज,वह बिरुआ
हरश्रंगार का एक बडा सा पेड बन कर झूमता है
मेरे आंगन मे
और महमहाता है रात भर
और गमगमाता है दिन भर
और एक बार फिर मै डूब जाता हूं तुम्हारी स्म्रतियों मे
और मै भूल जाता हूं तुम्हे भूलने की बात
मुकेश इलाहाबाद ................................................
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