एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Sunday, 7 June 2015
बुझा के चराग़ सोचता है
बुझा के चराग़ सोचता है जालिम, की अब उजाला न होगा
उसको क्या मालूम दिल मेरा किसी आफताब से कम नही
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------
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