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Thursday 10 September 2015

आंसुओं, से ज़ख्म धोया किये


आंसुओं, से ज़ख्म धोया किये 
तुम बिन बहुत हम रोया किये 

कहने को तो खाली हाथ थे हम 
ग़म ज़माने भर के ढोया किये

जिनके  लिए गुल खिलाते रहे
वे हमारे लिए कांटे बोया किये    

नींद मे  दर्द पता नहीं लगता  
शब्भर नींद गहरी सोया किये 

जब भी ज़िंदगी फुर्सत देती है 
मुकेश तेरे बारे में सोचा किये 


मुकेश इलाहाबादी ------------

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