नजरिया - अपना अपना
एक तितली
निगाह में थी
फूल के
वो आयी,
बैठी भी
फिर
उड़ गयी
(तितलियाँ एक फूल पे
कब बैठीं ?)
कली देख
भौंरा खुश हुआ
कई चक्क्र लगाए
कली मुस्कुराई
इठलाई
भौंरे के बैठते ही
खिल के फूल बनी
हवा के संग संग डोलने लगी
अभी वह खुश भी न हो पाई थी
भौंरा उड़ चूका था
एक और
मुस्कुराती कली की और
(भौंरे कब किसे कली या फूल के हुए हैं ?)
मुकेश इलाहबदी ----------
एक तितली
निगाह में थी
फूल के
वो आयी,
बैठी भी
फिर
उड़ गयी
(तितलियाँ एक फूल पे
कब बैठीं ?)
कली देख
भौंरा खुश हुआ
कई चक्क्र लगाए
कली मुस्कुराई
इठलाई
भौंरे के बैठते ही
खिल के फूल बनी
हवा के संग संग डोलने लगी
अभी वह खुश भी न हो पाई थी
भौंरा उड़ चूका था
एक और
मुस्कुराती कली की और
(भौंरे कब किसे कली या फूल के हुए हैं ?)
मुकेश इलाहबदी ----------
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