एक नदी
बहा ऊंगा
इत्र की
उतारूंगा
उसमे फूलों
की नाव
जिसपे बैठ के
चलेंगे
हम दोनों
पार
उस पार
जहाँ
बरसती होगी
चांदनी
खिलते होंगे
ईश्क के गुलाब
और
अहर्निश बजती होगी
सरगम
तुम्हारी पायल के
साथ करती रहेगी
संगत
और मै
देखूँगा
एक मीठी मुस्कान
तुम्हारे चेहरे पे
मुकेश इलाहाबादी --
बहा ऊंगा
इत्र की
उतारूंगा
उसमे फूलों
की नाव
जिसपे बैठ के
चलेंगे
हम दोनों
पार
उस पार
जहाँ
बरसती होगी
चांदनी
खिलते होंगे
ईश्क के गुलाब
और
अहर्निश बजती होगी
सरगम
तुम्हारी पायल के
साथ करती रहेगी
संगत
और मै
देखूँगा
एक मीठी मुस्कान
तुम्हारे चेहरे पे
मुकेश इलाहाबादी --
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