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Tuesday 29 March 2016

मैंने भी सेल्फी ली

एक दिन
मैंने भी सेल्फी ली

सेल्फी में
मेरा पेट
बड़ा ही नहीं बहुत बड़ा
दिख रहा था
हंडिया से भी बड़ा
आकाश से भी बड़ा
इतना बड़ा की
समां जाए सारी दुनिया का
भोजन पानी
धन दौलत
मान सम्मान
यहाँ तक की
पेड़ पहाड़ और
जंगल भी सारी नदियों सहित
भी भी न भरे ऐसा पेट था
मेरा मेरी सेल्फी में

और एक जीभ थी
लपलपाती हुई
लाल बेहद लाल
लार से भरी हुई
जो स्वाद लेना चाहती थी
कच्चे और पक्के दोनों माँस का
और हर खाद्य अखाद्य का

सेल्फी में मेरी आँखें
एक गहरे लेंस की तरह नज़र आ रही थी
जिसकी एक आँख में
दूरबीन और एक आँख में म्इक्रोस्कोप फिट थे
जो अपने मतलब की हर चीज़ देख लेती थी
चाहे वो आसमान में हो या पातळ में
नज़दीक हो या दूर हो
पहाड़ सी ऊंची हो या
प्रोटॉन सी छोटी हो

मेरे पैर लम्बे और बेहद लम्बे
जो नाप सकते थे
अपना गॉव ही नहीं
पूरा भारत
पूरा एशिया
यहाँ से ले के कुस्तुन्तुनिया तक
और अंटार्टिका तक
उत्तरी ध्रुव से ले के
दक्षणी ध्रुव तक

और हाथ इतने लम्बे थे सेल्फी के
की उसके अंगूठे पूरी दुनिया को
अंगूठा दिखा सकते थे ओर
अपनी मुठी में पूरा देश
पूरा आसमान रख के भी
खाली की खाली रहती

खैर --
मैंने फिलहाल इस सेल्फी को
सिर्फ और सिर्फ अपने मोबाइल में
पासवर्ड लगा के रख दिया है

ताकि कोइ देख न सके

मुकेश इलाहाबादी -----------

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