रात के आँचल में मुँह छुपा के रोई
ज़िन्दगी हादसों से घबरा के रोई
फूल सा खिला करती थी सच्चाई
झूठ के हाथों आबरू लुटा के रोई
पहले ईश्क़ का नाम लिखा उसने
फिर नाम आँसुओं से मिटा के रोई
ज़ीस्त पहले तमाम दर्द सहती रही
फिर सारे ज़ख्म दिखा दिखा के रोई
मुकेश की ग़ज़लों में बहुत दर्द है ,,
ईश्क़ अपना दर्द सुना सुना के रोई
मुकेश इलाहाबादी ----------------
ज़िन्दगी हादसों से घबरा के रोई
फूल सा खिला करती थी सच्चाई
झूठ के हाथों आबरू लुटा के रोई
पहले ईश्क़ का नाम लिखा उसने
फिर नाम आँसुओं से मिटा के रोई
ज़ीस्त पहले तमाम दर्द सहती रही
फिर सारे ज़ख्म दिखा दिखा के रोई
मुकेश की ग़ज़लों में बहुत दर्द है ,,
ईश्क़ अपना दर्द सुना सुना के रोई
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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