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Saturday 3 September 2016

तुम्हारे वायदों की तरह

तयशुदा,
वक़्त पे,
तुम नहीं आये
आये भी तो, देर से आये
कभी तो, नहीं भी आये

मग़र,
मैंने किया इंतज़ार, तुम्हारा

हमेशा,
पार्क की  कोने वाली
बेंच पे, सूरज के डूबने
और चाँद के डूबने के
बहुत देर बाद तक भी
इस ख़याल से
शायद तुम कभी भी
दबे पाँव पीछे से आकर
अपनी हथेली से
मेरी पलकों को बंद कर
मुझे चौंका दोगी
और मैं भी सारे गीले - शिकवे भूल
तुम्हारी कलाई पकड़
तुम्हे अपनी गोद में गिरा लूँगा
और तब तुम
अपनी दूधिया हँसी बिखेर दोगी
मेरी हथेलियों पे

मगर,
मेरे ये ख्वाब भी
हकीकत में बदलने से पहले
दगा दे गए
तुम्हारे वायदों की तरह

फिर भी मैं, करूँगा इंतज़ार
तुम्हरा, तुम्हारे आने तक

सुमी , सुन रही हो न ??

मुकेश इलाहाबादी ---------
 

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