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Thursday 15 September 2016

ख्वाबों को नए पर मिल जाते हैं

ख्वाबों को
नए
पर मिल जाते हैं
मैं उड़ने लगता हूँ
नील गगन में
ऊपर - ऊपर और ऊपर

डगमगाती,
नाव को के पाल संभल जाते हैं
और मैं
डूबने से बच जाता हूँ

पीले निश्तेज चेहरे पे
सुबह के
सूरज की
रौशनी आ जाती है

बदन चंदन सा महक उठता है

और ,,,,,,
ये सब होता है मेरे साथ
तुमसे मिल के

और सिर्फ तुमसे मिल के

सुमी - सुन रही हो न ??

मुकेश इलाहाबादी ---

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