Pages

Saturday 5 November 2016

हर रोज़ ज़िन्दगी मेरा मज़ाक उड़ाती क्यूँ है

हर रोज़ ज़िन्दगी मेरा मज़ाक उड़ाती क्यूँ है
गर वो मेरा नहीं तो उसकी याद आती क्यूँ है

ग़र मसले जाना, मुरझा जाना ही नियत है
क़ायनात इत्ते मासूम फूल खिलाती क्यूँ है

न चाँद मेरा है, फ़लक़ के सितारे मेरे, फिर
रात चाँदनी आँगन में यूँ मुस्कुराती क्यूँ हैं

जानता हूँ तू मुझे हरगिज़ याद करती नहीं
फिर साँसों में तू चंदन सा महमहाती क्यूँ है

मुकेश सिवाय दर्द के तुझसे हासिल क्या है
ज़िन्दगी सुबो शाम इत्ता मुस्कुराती क्यूँ है

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

No comments:

Post a Comment