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Thursday 12 January 2017

प्रतीक्षारत

आज भी
दरवाज़े से सटे
मेरे कान प्रतीक्षारत हैं
तुम्हारे आने की
पदचाप सुनने को
कि, आज भी
खुली हैं मेरी आँखे
तुम्हे देख लेने को जी भर के
बस एक बार
कि,
बस एक बार
तुम्हारे लौट आने की
प्रतीक्षा में
प्रतीक्षारत है मेरा रोम - रोम

सुमी - मेरी प्यारी सुमी

मुकेश इलाहाबादी ---

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