एक
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मेरी,
तमाम कोशिशें
नाकामयाब रही
उस शून्य को भरने में
जो उपजा है
तुम्हारे जाने के बाद
दो
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शायद
मेरे ही हाथ
छोटे रह गए हों
उस चाँद को छूने में
जिसे पाना मेरी चाहत रही
मुकेश इलाहाबादी ---------
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मेरी,
तमाम कोशिशें
नाकामयाब रही
उस शून्य को भरने में
जो उपजा है
तुम्हारे जाने के बाद
दो
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शायद
मेरे ही हाथ
छोटे रह गए हों
उस चाँद को छूने में
जिसे पाना मेरी चाहत रही
मुकेश इलाहाबादी ---------
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