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Saturday 18 March 2017

आवारा बादल सा

आवारा
बादल सा
बरस के खाली हो जाना
चाहता हूँ
किसी भी खेत पे
मैदान पे नदी में
नाले में

मगर नहीं
नहीं बरसूँगा उमडूंगा - घुमडूंग
बहूँगा देर तक - दूर तक
हवा के संग संग

जब तक मिलेगी नहीं वो धरती
जो तप रही होगी
जल रही होगी
सिर्फ और सिर्फ
मेरे इंतज़ार में
(सुमि के लिए )

मुकेश इलाहाबादी -----------

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