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Friday 28 April 2017

बेशक़ तुम चाँद हो

बेशक़
तुम चाँद हो
और मै - तुम्हे नहीं पा सकता

चाहे, कितनी भी
ऊँची सीढ़ी बना लूँ
कितनी भी
ऊँची छत पे चढ़ जाऊँ
या कि पहाड़ पे चला जाऊँ
या की उड़ के फलक तक हो आऊं
परिंदा बन के
या फिर - बादल ही क्यूँ न बन जाऊँ

मगर मै तुम्हे नहीं छू पाऊँगा -मेरी चाँद

इसी लिए  क्यूँ न मै झील बन जाऊँ
गहरे नीले -ठहरे पानी की झील
ताकि - जब कभी तुम आकाश में
भव्यता के साथ उगोगी तो
तुम अपने अक्स को ले
इस झील के पानी में उतर आओगी
और मै अपने सीने में तुम्हे पा के मुस्कुराऊँगा
और मेरे अंदर की मछली मचल के पानी में
फुदकेगी -
खुशी की लहरें दूर तक
वृत्ता कार हो के मुस्कराएँगी
क्यों - सुमी - ठीक रहेगा न ??

मुकेश इलाहाबादी -------------------

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