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Friday 2 June 2017

अपना शहर

भीड़ ,
बदहवास सी अपना शहर ढूंढ़ रही थी
शहर,
जो धीरे - धीरे, गायब हो चूका था दुनिया के नक़्शे से
भीड़ , धुँए के सैलाब में ढूंढ रही थी अपना शहर
उन्हें लग रहा था,
खेत खलिहानो , पगडंडियों , तालाब , पोखरों
कच्चे - पक्के मकानों , पशु पक्षियों
व बागानों से लदा -फंदा उनका शहर
इसी धुँए के सैलाब ने निगल लिया है
भीड़ जितना धुँए के सैलाब में घुसती
अँधेरा उन्हें उतना ही लीलता जा रहा था
अब , उनकी आँखे धुँए की किरच से
जलने लगी थी.
भीड़ चीख रही थी - चिल्ला रही थी
मगर, अपना शहर ढूंढने की ज़ुस्तज़ू में आगे
बढ़ती जा रही थी
लो, तेज़ाब की बारिश होने लगी
लोगों के जिस्म गलने लगे - बेतरह जलने लगे
भीड़ जोर - जोर से रोने चिल्लाने लगी - भागने लगी
अंधेरा - धुंआ - तेज़ाबी  बारिश
अजीब खौफनाक मंज़र तामील हो चूका था
लोग 'त्राहिमाम - त्राहिमाम ' चीख चिल्ला रहे थे
तभी,
ऊपर से एक रोशनी का गोला धीरे धीरे नमूदार हुआ
रोशनी तेज़ तेज़ और इतनी तेज़ होती जा रही थी, कि लोगों की
आँखे चुंधियाने लगी
उस रोशनी में एक
शीशे की चारदीवारी में क़ैद - खूबसूरत शहर रौशन हुआ
भीड़ औचक देखने लगी शीशे की चाहर दीवारी में क़ैद
बेहद चमकते धमकते -
बेहद साफ़ सुथरे शहर को
भीड़ अभी कुछ समझ पाती एक आकाशवाणी हुई
आप घबराएं नहीं ये
ये सपनो क शहर आप का ही है
आप का अपना शहर - सपनो का शहर
जिसके लिए आप दर -बदर हुए हैं वही, सपनो का शहर
आप अपने इस शहर में रह सकते हैं

महज़ शर्त इतनी सी है
इस शहर में अब हमारा ही राज्य चलेगा
आप को इस शहर में रहने के लिए
बेहद साफ़ सुथरा रहना होगा और नत जानू रहना होगा
हमें हमारा कर देना होगा
हमारी शर्तों के अनुसार रहना होगा

भीड़ अचकचा गयी
कुछ समझ नहीं पा रही थी
तभी उनमे से कुछ लोग नत जानू हो गए
उस अदृश्य शक्ति के सामने और
झुके झुके उस खूबसूरत शहर में प्रवेश कर गए
अपनी रीढ़ झुकाये झुकाये

कुछ लोग अभी भी पेशोपश में
एक दुसरे को देख रहे थी
खुद को ठगा सा महसूस कर रहे थे

और -
कुछ लोग इस हादसे को सह नहीं पाए
'मेरा शहर मुझे दे दो - मुझे मेरा शहर दे दो ' कहते हुए
दूसरी दिशा में बदहवास से दौड़ गए
शायद वे इस हादसे से पागल हो गए थे

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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