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Saturday 17 June 2017

बरसों पुरानी कहानी बार - बार सुनाते हैं


बरसों पुरानी कहानी बार - बार सुनाते हैं
मेरे होंठ आज भी तेरा नाम गुनगुनाते हैं
यादों के पंछी अपना ठिया  पहचानते  हैं
सांझ होते ही अपने अड्डे पे लौट आते हैं
कित्ता तो चाहा गुज़रे लम्हे न याद आएं
सूदखोर की  तरह तकादे पे चले  आते  हैं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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