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Saturday 15 July 2017

ये तिल ही तो है

ऐे,
शोख़, चंचल आँखों
और आबनूसी गेसुओं वाली
भोली, मासूम अल्हड लड़की
तू , अपने खूबसूरत गालों पे
बैठे इस काले तिल को मुझे दे दे
जिसे मै फेंक आना चाहता हूँ
किसी कुआँ, खाई या
बहा आऊँ किसी नदी नाले में
क्यूँ कि यही वो मरदूद काला तिल है
जो किसी सजग चौकीदार सा मेरी नज़रों को
रोक लेता है अपने पास
और नहीं निहारने देता
तुम्हारे गालों की गोराई को
ज़ुल्फ़ों के पेचोख़म को
प्यारी मुस्कान को
और नहीं निहारने देता तुम्हे जी भर के
इसलिए,
ऐ मेरी प्यारी भोली दोस्त
अपना ये क्यूट , नटखट और बदमाश
तिल मुझे दे दे ताकि इसे फेंक आऊं दरिया में

(पर सच ये तिल ही तो है - जो जान ले लेता है )

ओ! माय सोणी
ओ ! माय लव डू यू हियर मी ??)

मुकेश इलाहाबादी ------------------

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