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Tuesday 11 July 2017

किसी दिन सुबह मै आँख खोलूं

किसी
दिन सुबह मै आँख खोलूं
तुम 'जाड़े की नर्म धूप सा
उतर आओ खिड़की से मेरे कमरे में
और बिछ जाओ बिस्तर पे
और मै तम्हे नर्म -गर्म लिहाफ सा
ओढ़ कर फिर से सो जाऊँ दिन भर के लिए
खिड़की पे परदे डाल के

(सोचो  ! ऐसा हो तो कैसा हो ? मेरी सुमी )

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

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