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Monday 31 July 2017

फ़क़त धूप ही धूप थी कोई साया न था

फ़क़त धूप ही धूप थी कोई साया न था
तुम्हारे जाने के बाद कोई हमारा न था

इक तुम ही तो थे, जिस्से सबकुछ कहा
किसी और को दर्द अपना सुनाया न था

किसी के पास मेरे ज़ख्म की दवा न थी
इसी लिए घाव किसी को दिखाया न था

तुमसे मिल कर हंसा था इक दिन फिर
उम्र भर बाद उसके खुलकर हंसा न था

इक दिन तूने मेरी हथेलो को चूमा था
बहुत दिनों तक हथेली को धोया न था

मुकेश ख़ुदा और मुहब्बत के सिवा मैंने
किसी और दर पे सिर को झुकाया न था

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

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