एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Monday, 17 July 2017
किसी गर्मी की
किसी
गर्मी की
ऊँघती दोपहर में ही
आ जाओ छाँव बन के
फिर सो जाऊँ मै
तुमको ओढ़ कर
निचिंत - खुश - खुश
किसी
जाड़े की सुबह सुबह
आ जाओ गुनगुनी धूप सा
दिन भर बैठा रहूँ छत पे
बदन सेंकता हुआ
मुकेश इलाहाबादी ---------
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