तुम्हारे
रूठ के जाने के बाद
इक लम्बे इंतज़ार के बाद
तुम्हारे लौटने की
सारी उम्मीदों के खत्म होने के बाद
मन स्लेट से सारे बिम्ब मिटा देने की गरज़ से
शब्दों के हवन कुंड में तुम्हारे
तुम्हारी पवित्र यादों की आहुतियां दी
जो समाप्त होने की जगह
यज्ञ की लपटों सा और और धधकने लगी हैं
और मेरे चारों और अब पवित्र खुशबू सा भी
व्याप्त हो गयी हो
ओ ! मेरी समिधा
ओ ! मेरी यज्ञ
ओ ! मेरी देवी
तुम सुन रही हो न ??
मेरी सुमी सुन रही हो न ??
मुकेश इलाहाबादी --------------
रूठ के जाने के बाद
इक लम्बे इंतज़ार के बाद
तुम्हारे लौटने की
सारी उम्मीदों के खत्म होने के बाद
मन स्लेट से सारे बिम्ब मिटा देने की गरज़ से
शब्दों के हवन कुंड में तुम्हारे
तुम्हारी पवित्र यादों की आहुतियां दी
जो समाप्त होने की जगह
यज्ञ की लपटों सा और और धधकने लगी हैं
और मेरे चारों और अब पवित्र खुशबू सा भी
व्याप्त हो गयी हो
ओ ! मेरी समिधा
ओ ! मेरी यज्ञ
ओ ! मेरी देवी
तुम सुन रही हो न ??
मेरी सुमी सुन रही हो न ??
मुकेश इलाहाबादी --------------
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