तुम्हारी
बातें जैसे
कोई बुलबुल चहचहा जाए
मुंडेर पे
तुम्हारी
हंसी, जैसे
किसी कोई बिखेर दे
ढेर सरे सफ़ेद मोती ज़मीन पे
तुम्हारी
आँखे, जैसे
मंदिर में टिमटिमाते दो दिए
तुम्हारी
साँसे, जैसे
इत्र की सीसी खुल के ढ्नंग जाये
और महमहा जाये सारा आलम
सच ! ऐसी ही हो तुम
बस ! मेरी नहीं हो तुम
मुकेश इलाहाबादी --------------
बातें जैसे
कोई बुलबुल चहचहा जाए
मुंडेर पे
तुम्हारी
हंसी, जैसे
किसी कोई बिखेर दे
ढेर सरे सफ़ेद मोती ज़मीन पे
तुम्हारी
आँखे, जैसे
मंदिर में टिमटिमाते दो दिए
तुम्हारी
साँसे, जैसे
इत्र की सीसी खुल के ढ्नंग जाये
और महमहा जाये सारा आलम
सच ! ऐसी ही हो तुम
बस ! मेरी नहीं हो तुम
मुकेश इलाहाबादी --------------
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