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Saturday 12 August 2017

तुम्हारी तरह खूबसूरत कविता लिखना चाहा

एक
दिन मैंने
तुम्हारी तरह खूबसूरत
कविता लिखना चाहा
शब्द कोष से ढूंढ ढूंढ ढेर सारे
अच्छे अच्छे शब्दों को भावों में पिरोया
कई नामवर कवियों  भावों को भी अपनी
कविता में पिरोया फिर प्रेम से
अपनी कविता को निहारा
तुम्हारी तस्वीर को निहारा
देर तक देखता रहा
लगा मेरी कविता तुम्हारी तस्वीर से फीकी है
मैंने उस कविता को फाड़ा और
फिर से पूरी तन्मयता से एक और प्यारी सी
कविता लिखी और फिर तुम्हारी पिक से तुलना की
पर इस बार  कविता तुम्हारी पिक से कमतर रही

बाद इसके कई कोशिशों के मै हारता ही रहा
नहीं लिख पाया एक बेहे पंक्ति तुम्हारी पिक सा

शायद तुम इतनी प्यारी हो जिसे दुनिया के
कोइ भी शब्द अपने अंदर नहीं समाहित कर पाएंगे

लिहाज़ा अब मै जान गया हूँ
तुमसे खूबसूरत कोइ कविता नहीं है - दुनिया में
जीती जगती - हँसती'- गुनगुनाती -
थोड़ी नखरीली और चटकीली

क्यूँ सच कह रहा हूँ न ???
बोलो न ????

मुकेश इलाहाबादी --------------

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