कविता
कागज़ पे लिखोगे
तो काली ही लिखोगे
न खुशबू होगी
न रंग होगा
न स्वाद होगा
एक बार
माटी के कागज़
बीज की स्याही और
हल की कलम से लिख के देखो
तुम्हारी कविता
धानी,हरी, गुलाबी कई कई रंगो में
खिलेगी महकेगी भी
जो तुम्हारे ही नहीं बहुतों के रगों में
साँसों में रच बस जाएगी और फिर
तुम एक अनिवर्चनीय आनंद में डूब जाओगे
कवि!
एक बार लिख कर देखो तो
माटी के कागज़ पे बीज की स्याही और हल नोक से
एक कविता - दिल से
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
कागज़ पे लिखोगे
तो काली ही लिखोगे
न खुशबू होगी
न रंग होगा
न स्वाद होगा
एक बार
माटी के कागज़
बीज की स्याही और
हल की कलम से लिख के देखो
तुम्हारी कविता
धानी,हरी, गुलाबी कई कई रंगो में
खिलेगी महकेगी भी
जो तुम्हारे ही नहीं बहुतों के रगों में
साँसों में रच बस जाएगी और फिर
तुम एक अनिवर्चनीय आनंद में डूब जाओगे
कवि!
एक बार लिख कर देखो तो
माटी के कागज़ पे बीज की स्याही और हल नोक से
एक कविता - दिल से
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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