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Saturday 16 September 2017

मान लो घुप्प अँधेरा कमरा है,

मान लो,
घुप्प अँधेरा कमरा है, दोनों की आँखों में पट्टी बंधी है।
और, एक दूजे को ढूंढना भी है, कल्पना करो कैसे ढूंढेंगे एक दूजे को ?
हूँ ! सही कहा तुमने, आवाज़ ही सहारा बनेगी, आवाज़ ही रास्ता देगी
इक दूजे तक पहुंचने का।
मान लिया तुम्हारी बात,
हम दोनों इक दूजे को ढूंढ लेते हैं , आवाज़ के सहारे, पर अब हम लोग
इक दूजे के कित्ते पास हैं  ये कैसे जानेंगे ? एक दूजे को कैसे मह्सूसेंगे,?
जानां ! बोलो, बोलो,,,,,
नहीं पता ?? हूँ, जानता हूँ , तुम्हे नहीं पता होगा।
तो सुनो ! हम दोनों इक दूजे को छू के जानेंगे इक दूजे को , इक दूजे को
पहचानेंगे इक दूजे के स्पर्श से।
इक दूजे के गालों को अपनी हथेलियों पे ले सहलाएँगे, रोयेंगे खुशी के आंसू
हथेलियां पूरे चहेरे को टटोलेगी, सिर माथा, बाल  चेहरा, कंधे और बाजुओं को
पकड़ के लिपट जायेंगे और फिर घुप्प अँधेरे में आँखों की बंद पट्टियों के
अंदर से रोशनी निकलेगी और हम एक ऐसी रोशनी में नहा जाएंगे जिसमे
अजब रूहानी खुशबू होगी , जो हमारी साँसों में घुल मिल के हमें भी महकउआ
बना देगी और फिर हम लिपटे रहेंगे बहुत बहुत देर तक महसूसते रहेंगे,
'ईश्क़ की रोशनी' को ,
क्यूँ है न ?? जानम ,,

इस लिए अँधेरे से मत डरो , एन्जॉय इट। एन्जॉय इट !

मुकेश इलाहाबादी -----------

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