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Saturday 16 September 2017

सुबह की धूप

देखना !
किसी दिन
जब सुबह, तुम
सो के उठोगी और जैसे ही
परदे खोलोगी
मै तुम्हारे उजले - उजले
रूई के फाहे से नर्म गालों पे
जाड़े की नर्म धूप सा पसर जाऊंगा
और तुम अपनी आँखों को मिचमिचाते हुए
अपनी हथेली से गालों को सहला के रात की खुमारी पोछोगी
और मै तुम्हारे गालों से खिलखिलाए हुए
बेतरतीब बिस्तर की सलवटों में पसर जाऊँगा
सुबह की ताज़ी धूप हूँ न मै ???

मुकेश इलाहाबादी ------------------

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