Pages

Friday, 8 September 2017

तमाम बहाने हैं मुस्कुराने को

तमाम बहाने हैं मुस्कुराने को
वर्ना तो ढेरों ग़म हैं बताने को
तुझसे नही तेरे ख्वाब से कहूँगा
आज की रात नींद में आने को
तुझ बिन नींद तो आने से रही
दर्द से बोलूंगा लोरी सुनाने को
सावन की रिमझिम बारिस से
कहूँगा तुमको झूला झूलाने को
मेरा दम निकले इसके पहले,
तुझसे कहूँगा इक बार आने को
मुकेश इलाहाबादी --------

No comments:

Post a Comment