एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 2 November 2017
अपनों से बिछड़ के रोता बहुत है
अपनों से बिछड़ के रोता बहुत है
मन का पंक्षी फड़फड़ाता बहुत है
जग में सारे बंधन मन के मन ही
मोह - माया में फंसाता बहुत है
जब हों अपनी मन मर्ज़ी के काज
तो, मुकेश मन खुश होता बहुत है
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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