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Wednesday 28 February 2018

दो मासूम शावक

जैसे,
जाड़े की नर्म धूप में
दो मासूम शावक
फुदक रहे हों
बस, ऐसा ही लगता है 
तुम्हारे हँसते हुए
उजले और कोमल गालों को देख कर
मुकेश इलाहाबादी ----------------

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