तेरे बदन की खुशबू से तरबतर हो जाऊँ
स्याह घनी ज़ुल्फ़ों की छाँव में सो जाऊँ
मंज़िल तक पंहुचा देगा कोई भी रास्ता
सोचता हूँ राहे ईश्क़ में चलकर खो जाऊँ
मुकेश इलाहाबादी --------------------
स्याह घनी ज़ुल्फ़ों की छाँव में सो जाऊँ
मंज़िल तक पंहुचा देगा कोई भी रास्ता
सोचता हूँ राहे ईश्क़ में चलकर खो जाऊँ
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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