Pages

Wednesday, 21 March 2018

सांझ होते ही फ़लक़ पे टाँक देता है

सांझ
होते ही फ़लक़ पे टाँक देता है
चमकते - धमकते सितारे
और एक खूबसूरत चाँद
जिन्हे दिन भर सहेजे रखता है
अपनी जेब में बड़ी एहतियात से

और फिर ,
इन चाँद -सितारों के साथ निकल पड़ता है
सैर पे - दूर बहुत दूर देश

जँहा - आबनूसी बालों और
रूई के फाहों जैसे गालों
मूंगिया होंठो वाली 'परी'
जो उसे देख मुस्कुराती है
दोस्ती का हाथ बढ़ाती है

वो भी हाथ बढ़ाता है
पर, हाथ मिलाने के पहले ही
सितारे टूट कर बिखर जाते हैं
और फिर वो
बिखरे हुए सितारों को बीनता है सहजता है

एक बार फिर सितारों को आसमान में टाँकने के लिए

मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------------

No comments:

Post a Comment