राख को बार बार न कुरेदा जाए
बुझी आग को न भड़काया जाए
आओ, बादलों के पार उड़ा जाए
रूठे हुए चन्दा को, मनाया जाए
टहलते हुए नदी किनारे चलते हैं
कंधे से कंधा जोड़ कर बैठा जाए
मौत से भी ठंडी खामोशी क्यूँ हैं
कोई कहानी किस्सा छेड़ा जाये
आ फिर से बचपना जिया जाये
मिल के छुपम छुपाई खेला जाये
सुना दोस्ती के पार बागे इश्क़ है
आ कुछ दिन वँहा भी ठहरा जाए
मुकेश शहर में तो बहुत रह लिए
कुछ दिन तो जंगल में रहा जाये
मुकेश इलाहाबादी -------------
बुझी आग को न भड़काया जाए
आओ, बादलों के पार उड़ा जाए
रूठे हुए चन्दा को, मनाया जाए
टहलते हुए नदी किनारे चलते हैं
कंधे से कंधा जोड़ कर बैठा जाए
मौत से भी ठंडी खामोशी क्यूँ हैं
कोई कहानी किस्सा छेड़ा जाये
आ फिर से बचपना जिया जाये
मिल के छुपम छुपाई खेला जाये
सुना दोस्ती के पार बागे इश्क़ है
आ कुछ दिन वँहा भी ठहरा जाए
मुकेश शहर में तो बहुत रह लिए
कुछ दिन तो जंगल में रहा जाये
मुकेश इलाहाबादी -------------
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