Pages

Sunday, 1 April 2018

जब से,

जब से, 
पौधा रोपा है
तुम्हारे नाम का
महकता है मेरा तन-मन
अहर्निश

रात,
लगा लेता हूँ तकिया
तुम्हारे नाम की
और डूब जाता हूँ
एक गहरी नींद में

मन
उदास होता है
तो तुम्हे याद कर लेता हूँ
और मुस्कुराता हूँ अकेले में
बहुत देर तक


मुकेश इलाहाबादी -------------- 

No comments:

Post a Comment