Pages

Thursday, 29 March 2018

अस्मा पे देखा तो सूरज गायब


अस्मा पे देखा तो सूरज गायब
रात के पहलू से महताब गायब

ज़माना देखता हूँ, हैरत होती है
इंसानों के धड़ हैं पर सर ग़ायब

छटपटा रहे हैं अपने घोंसलों में
परिंदों के जिस्म से पर गायब

मै इक दिन इश्क़ करने निकला
दिखा ! मेरे सीने से दिल गायब

दिहाड़ी से लौटे मज़दूर तो उन्हें
बस्ती में मिला अपना घर ग़ायब

मुकेश इलाहाबादी --------------

No comments:

Post a Comment