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Wednesday, 11 April 2018

सच है ग़मो की इन्तहां हो तो बेचैनियाँ बतियाती हैं


सच है ग़मो की इन्तहां हो तो बेचैनियाँ बतियाती हैं
लफ्ज़ खामोश हो जाएँ तो खामोशियाँ बतियाती हैं

जब दीवारें उठ कर दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं तो
सिसकते हैं रोशनदान और  खिड़कियाँ  बतियाती हैं

मुकेश, आओ कुछ देर को भौंरा बन गुलशन में चलें
हम भी देखें क्या गुलों से ये तितलियाँ बतियाती हैं


मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------

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