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Sunday 8 April 2018

जानती हो ! ये जो समंदर है न,

सुमी,
जानती हो ! ये जो समंदर है न, आज से हज़ारों हज़ार साल पहले आज की तरह
न तो खारा था और न ही यह एक जगह ठहरा हुआ था, इस  समंदर का भी पानी नदियों के जल की तरह
मीठा होता था और बहा करता था।  यंहा से वंहा तक, वंहा से वंहा तक, जंहा तक ज़मीन
हुआ करती थी दूर - दूर तक। ये समझ लो सुमी, ये समंदर एक महाद्वीप से दुसरे महाद्वीप
तक दुसरे से तीसरे महाद्वीप तक बहा करता था।  कभी अपनी मौज़ में आ कर ठांठे मारा करता  था,
तो कभी बिलकुल शांत हो जाया करता था, तो कभी हौले हौले बहा करता था अपनी मौज़ में।
पर था अपनी तनहाई में खुश और प्रसन्न।  लेकिन एक दिन एक आसमानी परी जो ज़मी पे
तफरीहन आयी थी जो बिलकुल तुम्हारी तरह थी, कजरारी आँखे, मरमरी बाहें और प्यारी मुस्कान
वाली,वो अपना आसमानी आँचल फैला के समंदर किनारे चहलकदमी करने लगी।
जैसे उस दिन तुमने किया था, आसमानी परी के गुलाबी कोमल पाँव समंदर के किनारे की रेत् पे
अपनी कोमल छाप छोड़ रहे थे , जैसे तुम्हारे कदमो के निशान थे उस दिन जैसे।
समंदर उस आसमानी परी की अठखेलियाँ देख चंचल हो उठा और वो अपनी उत्तल तरंगो से उसके
पाँव पखारने लगा, आसमानी परी खिलखिला उठी बर्फ से ठन्डे और कोमल जल से वो लहरों के
संग - संग खेलने लगी, समंदर भी अपनी मौज़ में उस प्यारी और सोणी सी परी
के साथ - साथ खेलने लगा, जैसे उस दिन तुम लहरों संग मौज़ कर रही थी।  खैर, परी
समंदर की बाँहों में बहुत देर तक खेलती रही - खेलती रही, और खेलते - खेलते कब साँझ हो गयी
उसे पता न लगा, उसे पता तब लगा जब फलक पे प्यारा और सलोना सा चाँद उग आया ,
चाँद भी समंदर संग अठखेलियां करती इस परी को देख मोहित हो गया और वहीं से अपनी
चांदी सी शीतल लहरें लुटाने लगा - जिसकी रोशनी में उस आसमानी परी की ख़ूबसूरती
और और बढ़ गयी।  परी ने नज़रें उठा के फ़लक़ पे अपनी कजरारी कजरारी नज़रें उठा के देखा।
नज़रें चार हुई चाँद की और उस आसमानी परी की।  आँखों आँखों में न जाने क्या बात हुई और
कुछ इशारे हुए , वो आसमानी परी अपने पँख फैला के समंदर को "बाय - बाय" , "सी यू दोस्त "
 कहती अपने चाँद के पास उड़ती हुई चली गयी।
सुना है,  समंदर तब से बहुत उदास है , और तब से ही वो उसी जगह पे स्थिर है।  इस उम्मीद पे
शायद किसी दिन उसकी आसमानी परी इश्कबाज़ चाँद को छोड़ उसके पास आएगी।
और समंदर का  पानी भी ताबेहे से समंदर के आंसुओं से खारा हो गया है।

हो सकता है, ऐसा कभी न हुआ हो और ये सब मेरी कल्पना हो, पर सुमी ये तो सच है ,
मेरे लिए तो तुम ही किसी आसमानी परी से कम नहीं हो जिसके जाने के बाद से जीवन की सारी
यात्राएं तुम्हारी यादों के इर्द गिर्द फैले तट पे ठहर गयी हैं।

सुन रही हो न मेरी सुमी ??


मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------------------------

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