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Thursday 26 April 2018

अत्र कुसलस्तु, तत्रास्तु

अत्र कुसलस्तु, तत्रास्तु
कह कर ख़त लिखने की कोई ज़ररत नहीं रह गयी है
आज - इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के समय में
जब कि
मिनट मिनट की खबर एक दूजे तक पहुंच जाती हो
एस  एम् एस और नेट के ज़रिये
ऐसे वक़्त में तुम्हे खत लिखना
इतिहास के पन्नो में लुप्त होती पत्र लेखन कला को ज़िंदा रखने
की मरी मरी कोशिश है।

अत्र कुसलस्तु - तत्र कुसलास्तु
की ज़रूरत इस लिए भी नहीं है कि
मित्र तुम्हे भी पता है
जैसे मेरे शहर में बलात्कार हो रहे हैं
वैसे ही तुम्हारे यहाँ भी रोज़ रोज़ बलात्कार हो रहे हैं
वहां भी डीजल और पेट्रोल के दाम महंगे हो रहे हैं
रोज़ - रोज़
रोज़ रोज़ वंहा भी चोरी - छिनैती बढ़ रही है
हमारे यंहा भी
जिसकी सूचना
चीख चीख कर न्यूज़ चैनल तुम तक हमारे यहाँ की
हमारे यहाँ की खबर तुम तक पंहुचा ही रहे हैं
और
हमें भी मालूम है तुम्हारे यहाँ की सड़कें टूटी हैं
पुल बनने के पहले ढह रहे हैं
तुम्हारे यंहा भी हर साल बाढ़ और सूखा बदस्तूर आता है
और सरकार के कान में जूँ नहीं रेंगती है
मित्र तुम्हे भी मालूम है
राजा और मन्त्री बहरे हो चुके हैं
जनता के लिए - अंधे भी हो चुके हैं
और क्या लिखूँ मित्र तुम्हे भी मालूम है
डर से मै भी जी रहा हूँ
डर  तुम भी जी रहे हो
न जाने कब बम फट जाए
न जाने कब बहन बेटी अगवा हो जाएँ
पहले मंदिर मस्जिद में तो कम से कम थोड़ी शुकूनियत
की उम्मीद होती थी अब वो भी न रही
खैर.ये सब तो चलता ही रहेगा
और ये सब तो तुम इंटरनेट और टी वी से जान भी चुके होंगे
जो बात इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी न दे पायी है वो ये है
की बाबू जी कई साल पहले ही गुज़र गए
पारिवारिक कलह ने वक़्त के पहले ही  उन्हें देह और दुःखो से मुक्त कर दिया
माँ पिता जी के जाने के बाद चुप - चुप रहती हैं
पिता के पेंसन का सहारा है
बाकी वही पारिवारिक समस्याएं हैं
जो तुम्हारी हैं
वो स्कूल वाली को
फेसबुक और नेट में गूगल कर के बहुत बार ढूंढ चूका हूँ
नहीं मिली - शायद मेरी किस्मत में ही नहीं रही
तुम्हारी वाली मिली क्या?
मिली तो तो बताना - खत लिख के
शुगर और बी पी की शिकायत है
जा रहा हूँ दवाई खाने
लिहाज़ा ख़त यंही समाप्त कर रहा हूँ
हालांकि बहुत कुछ है जो बताने को
पर तुम्हारे खत के जवाब आने के बाद
फ़िलहाल के लिए इतना ही
बाकी अत्र कुशलम - तत्रास्तु - समझना
ख़त का जवाब जल्दी देना
टूटे हुए सिलसिले को बनाये रखना

तुम्हारा बचपनिया दोस्त

(वैसे इसे तुम मेरे दुखी मन का एकालाप कह सकते हो,
या फिर एक अतुकांत सी कविता कह सकते हो - या फिर
ख़त लिखने की विलुप्त होती कला को ज़िंदा रखने की
मरी -मरी कोशिश समझ सकते हो )

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------




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