सज संवर के इस कदर मुस्कुराना ,
मुझे अच्छा लगा तुम्हारा इतराना
बहतु क्यूट लगी तुम मुझको, वो
बनावटी गुस्से में आँखे दिखाना
बिन प्यास के भी माँगा था पानी
वो नामक मिला के पानी पिलाना
याद आये है बार बार, चाय रख के
मुँह चिढ़ा के वो तेरा भाग जाना
मुकेश इलाहाबादी -------------
मुझे अच्छा लगा तुम्हारा इतराना
बहतु क्यूट लगी तुम मुझको, वो
बनावटी गुस्से में आँखे दिखाना
बिन प्यास के भी माँगा था पानी
वो नामक मिला के पानी पिलाना
याद आये है बार बार, चाय रख के
मुँह चिढ़ा के वो तेरा भाग जाना
मुकेश इलाहाबादी -------------
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