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Friday 31 August 2018

सावन भादों सा बरस गयी आँखें

सावन भादों सा बरस गयी आँखें
तेरे दीदार  को  तरस  गयी आँखे

मुद्दतों से यँहा वीराना वीराना था 
तुझे  देखा तो  निखर गयीं आँखे 

यूँ तो निगाह में कोई और ही था
तुझे देख वंही अटक गयी आँखे 

ज़रा सा उसकी तारीफ क्या की
लाज से उसकी लरज़ गयी आँखे

पलकों पे हया के  हीरे- मोती थे
नज़रें मिली तो बहक गईं आँखे

मुकेश इलाहाबादी --------------

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