Pages

Thursday, 30 August 2018

हर रोज़ उलीचता हूँ

हर
रोज़ उलीचता हूँ
अहर्निश 
दुःख के
हरहराते समंदर को
अपनी चोंच से
टिटिहरी की तरह
फिर शाम थक कर
सो जाता हूँ - उसी समंदर की रेत् के किनारे

मुकेश इलाहाबादी ------------------------------

No comments:

Post a Comment