दीवारें
सिर्फ दीवारें नहीं
सोख्ता भी होती हैं
तभी तो
जहां दीवारों की बाहरी सतह, हमारे लिए दिन रात सोखती हैं
धूप, हवा, पानी और तूफान
वहीं दीवारों की अंदरूनी सतह सोख लेती हैं
आँखो की नमी
घुटी घुटी सिसकियाँ
माँ की गठिया, बाप की खांसी
पत्नी की चुप्पी
बच्चों की अधूरी फरमाइशें
खुद की मज़बूरियाँ
यही सोख्ता दीवारें
थके बदन को
टेक लगाने के लिए
सहारा भी बन जाती हैं
लिहाज़ा दीवारें हमारे
बहुत काम की होती हैं
सिवाए दो दिलों के बीच न खड़ी हो
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,
सिर्फ दीवारें नहीं
सोख्ता भी होती हैं
तभी तो
जहां दीवारों की बाहरी सतह, हमारे लिए दिन रात सोखती हैं
धूप, हवा, पानी और तूफान
वहीं दीवारों की अंदरूनी सतह सोख लेती हैं
आँखो की नमी
घुटी घुटी सिसकियाँ
माँ की गठिया, बाप की खांसी
पत्नी की चुप्पी
बच्चों की अधूरी फरमाइशें
खुद की मज़बूरियाँ
यही सोख्ता दीवारें
थके बदन को
टेक लगाने के लिए
सहारा भी बन जाती हैं
लिहाज़ा दीवारें हमारे
बहुत काम की होती हैं
सिवाए दो दिलों के बीच न खड़ी हो
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,
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