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Sunday 28 October 2018

दीवारें
सिर्फ दीवारें नहीं
सोख्ता भी होती हैं

तभी तो
जहां दीवारों की बाहरी सतह, हमारे लिए दिन रात सोखती हैं
धूप, हवा, पानी और तूफान

वहीं दीवारों की अंदरूनी सतह सोख लेती हैं
आँखो की नमी
घुटी घुटी सिसकियाँ
माँ की गठिया, बाप की खांसी
पत्नी की चुप्पी
बच्चों की अधूरी फरमाइशें
खुद की मज़बूरियाँ

यही सोख्ता दीवारें
थके बदन को
टेक लगाने के लिए
सहारा भी बन जाती हैं
लिहाज़ा दीवारें हमारे
बहुत काम की होती हैं

सिवाए दो दिलों के बीच न खड़ी हो

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,

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