तनहाई में ये तमाशा कर लेता हूँ
अक्सर रोते - रोते मै हँस लेता हूँ
खुद के लिए लापरवाही है मुझमे
तुझसे मिलना हो तो सज लेता हूँ
वैसे तो हूँ मै इक आज़ाद परिंदा
कभी कभी घर में भी रह लेता हूँ
बात किसी की, सह नहीं सकता
अपनों की गाली भी सुन लेता हूँ
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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