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Wednesday, 23 January 2019

सोचोगी भी और कुछ न बोलोगी

सोचोगी भी और कुछ न बोलोगी 
हाँ न के झूले में कब तक झूलोगी

तनहाई के गुप्प अँधेरे में छुपकर 
तुम कबतक चुपके चुपके रोओगी

आ जाओ हक़ीक़त की दुनिया में
यूँ सपनो में तुम कबतक डोलोगी

वक़्त अभी भी है आ जाओ वर्ना
रातों को मुझको तारों में ढूँढोगी 

मैंने तो कह दी है दिल की बातें
तुम दिल की गाँठे कब खोलोगी

मुकेश इलाहाबादी ---------------

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