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Thursday, 24 January 2019

वक़्त के चाक " पर

सुमी, जानती हो ?
एक ,
दिन तुम्हारी
यादों की सोंधी - सोंधी मिट्टी को
आँसुओं से गूँथ कर
रख दिया 'वक़्त के चाक " पर
गढ़ दिया एक दिया
बार दी हिज़्र की बाती
अब रौशन हैं तुम्हारे नाम से
मेरे ईश्क़ की लम्बी रात

मुकेश इलाहाबादी --------------

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